सहज निघाला विषय तरी तो जाइल कुठल्या कुठे दूरवर
नसता काही कारण कोणी विचारील 'का उदास तू ग?'
आणि विचारिल कोणी, 'कसली व्यथा तुला, का हताश तू ग?'
विस्कटलेल्या रुक्ष बटांना बघून कोणी कुजबुज करतिल
पिचलेल्या बांगड्या बघुनही कितीतरी टोमणे मारतिल
थरथरणारे हात पाहता खवचट, तिरके बोल बोलतिल
क्रूर, दुष्ट हे लोक
तुझ्या प्रत्येक कृतीचा कीस पाडतिल
सहज बोललो असे दाखवुन चर्चेमध्ये मला आणतिल
त्यांच्या असल्या चर्चांचा परिणाम नको व्हायला तुझ्यावर
तुझ्या मनातिल भाव अन्यथा वाचतील ते तुझ्या मुखावर
काही झाले तरी प्रश्न तू नको विचारू कधीच त्यांना
माझ्याबद्दल उगीच काही बोलु नको तू मुळीच त्यांना
सहज निघाला विषय तरी तो जाइल कुठल्या कुठे दूरवर
ही आहे मूळ रचना : बात निकली तो बहोत दूरतलक जायेगी
बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जायेगी
लोग बेवजह उदासी का सबब पूछेंगे
ये भी पूछेंगे के तुम इतनी परेशां क्यूँ हो
उंगलियां उठेंगी सूखे हुए बालों की तरफ़
एक नज़र देखेंगे गुज़रे हुए सालों की तरफ़
चूड़ियों पर भी कई तंज़ किये जायेंगे
काँपते हाथों पे भी फ़िकरे कसे जायेंगे
लोग ज़ालिम हैं हर एक बात का ताना देंगे
बातों बातों में मेरा ज़िक्र भी ले आयेंगे
उनकी बातों का ज़रा सा भी असर मत लेना
वरना चेहरे की तासुर से समझ जायेंगे
चाहे कुछ भी हो सवालात ना करना उनसे
मेरे बारे में कोई बात न करना उनसे
बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जायेगी
- कफील आजेर
लोग बेवजह उदासी का सबब पूछेंगे
ये भी पूछेंगे के तुम इतनी परेशां क्यूँ हो
उंगलियां उठेंगी सूखे हुए बालों की तरफ़
एक नज़र देखेंगे गुज़रे हुए सालों की तरफ़
चूड़ियों पर भी कई तंज़ किये जायेंगे
काँपते हाथों पे भी फ़िकरे कसे जायेंगे
लोग ज़ालिम हैं हर एक बात का ताना देंगे
बातों बातों में मेरा ज़िक्र भी ले आयेंगे
उनकी बातों का ज़रा सा भी असर मत लेना
वरना चेहरे की तासुर से समझ जायेंगे
चाहे कुछ भी हो सवालात ना करना उनसे
मेरे बारे में कोई बात न करना उनसे
बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जायेगी
- कफील आजेर
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